भूमौ शत्रून् हीनरूपानुत्तराशिरसस्तथा ।
ॐ क्रीं कालिकायै स्वाहा मम नाभिं सदाऽवतु ।
“ मम शत्रून् खादय खादय हिंस हिंस मारय मारय
ह्रीं त्रिलोचने स्वाहा नासिकां मे सदावतु।
ब्राह्मी शैवी वैष्णवी च वाराही. नारसिंहिका । ४ ।
दक्षिणे कालिके पातु घ्राणयुग्मं महेश्वरि ॥
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ह्रीं ह्रीं अर्थात बारम्बार शक्ति प्रदान करने वाली, विकरा दांतों वाली, रुधिर पान से प्रसन्न होने वाली मुण्डमाला को पहन वाली कालिके माता सदा सर्वदा मेरी रक्षा करो।
ॐ ह्रीं कालिकायै स्वाहा मम पृष्ठं सदाऽवतु ।
खड्गमुण्डधरा काली सर्वाङ्गभितोऽवतु ॥
इच्छा होते हुये भी पुरा दिन काम करने के बाद कब समय बचत हैं
लाल वस्त्र धारण किए, भयंकर दाँतों वाली जो कि बड़े जो से अट्टाहास करती हैं एवं जो सदा नग्न रहती हैं।
छाननी अर्ज भरलेल्या अपात्र उमेदवारांची यादी